Saturday, 11 March 2017

आर्यो का आगमन

आर्यों का आगमन

वास्तव में आर्यन उन लोगों को कहा जाता था जो प्राचीन इंडो-युरोपियन भाषा बोलते थे और  जो प्राचीन ईरान और उत्तर भारतीय महाद्वीपों में बसने  की सोचते थे | आर्यन  भारत में पूर्व वैदिक काल मे बसे | इसे सप्तसिंधु या सात नदियों झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, सिंधु और सरस्वती की धरा कहा गया |

घटना क्रम :

1500 B .C और 600 B .C के युग को पूर्व वैदिक युग (ऋग वैदिक काल) तथा बाद के वैदिक युग में विभाजित किया गया |

पूर्व वैदिक काल : 1500 B .C – 1000 B . C ; यह वह युग था जब आर्यन्स भारत पर आक्रमण कर सकते थे |बाद का वैदिक युग : 1000 B . C – 600 B . C

वैदिक काल की विशेषताएँ

शब्दों की बुनियाद से निकला वेद शब्द का अर्थ है “जानना” या “उच्च विद्या” | चार प्रकार के महत्वपूर्ण वेद हैं:

ऋगवेद : यह 10 किताबों से बना है और इसमे 1028 भजन हैं जिन्हे अलग अलग ईश्वरों के लिए गाया गया है | मण्डल II से VII को पारिवारिक पुस्तक के नाम से जानते थे क्यूंकि यह पारिवारिक कथाओं जैसे गृतसमदा, विश्वामित्र, बामदेव, आरती, भारद्व्जा और वसीष्ठा पर आधारित थे |यजुर्वेद : यह राजनीतिक जीवन, सामाजिक जीवन, नियम और कायदों के बारे में बताता है जिन्हे हमे मानना चाहिए | यह कृष्ण यजुर वेद और शुक्ल यजुर वेद में विभाजित हैं |सामवेद : यह कीर्तन व प्रार्थनाओं की किताब है और इसमे 1810 भजन हैं |अथर्ववेद : यह जादुई वचनों , भारतीय औषिधियों और लोक नृत्य पर आधारित है |

ब्राह्मण

ये वेदों की द्वितीय क्ष्रेणी से तालुक्क रखते हैं और इनका संबंध प्रार्थना और बलिदानों के समारोहों से है |तंद्यमहा ब्राह्मण को सबसे पुराने ब्राह्मण माना जाता था और इनकी कई पौराणिक कथाएँ  हैं |व्रत्यसोमा एक समारोह है जिसमे इन पौराणिक कथाएँ के द्वारा गैर आर्यन को आर्यन में बदला जाता था |सतपथा एक बहुत महत्वपूर्ण तथा विस्तीर्ण ब्राह्मण है | यह वैदिक काल के दर्शन शास्त्र, धर्म शास्त्र, शैली और रीति-रिवाज के बारे में बताता है |ब्राह्मण का आखिरी भाग अरण्यकस था | इसके दो भाग ऋगवेद से जुड़े थे ; आइतारेय और कौसितकी |108 प्रकार के दर्शन शास्त्र हैं जिनका  सीधा संबंध आत्मा से है | इन्हे उपनिषद कहते हैं |बृहदर्णयका और चंदोग्य सबसे पुराने उपनिषद हैं |यह वचन “सत्यमेव जयते” मुंडका उपनिषद से लिया गया है|

आर्यन का संघर्ष

आर्यन के प्रथम दस्ते ने भारत में लगभग 1500 B . C  में आक्रमण किया |उन्हें भारत के मूल निवासियों जैसे दास व दस्यु से संघर्ष करना पड़ा|हालांकि दास को आर्यन की तरफ से कभी भी आक्रमण के लिए उत्तेजित नहीं किया गया, पर दस्यु हत्या का ऋग वेद में बारबार उल्लेख किया गया है |इन्द्र को ऋग वेद में पुरान्द्र के नाम से भी उल्लेख किया गया है जिसे किलों का भंजक भी कहा गया है |पूर्व आर्यन के किलों का उल्लेख हरप्पा संस्कृति की वजह से भी किया गया है |आर्यन मूल निवासियों पर इसलिए भी विजय प्राप्त कर पाये क्यूंकि उनके पास बेहतर हथियार,वरमान, तथा घोड़े वाले रथ थे |आर्यन् दो तरह के संघर्षों  में व्यस्त रहे  एक तो स्वदेशी लोग व अपने आप में |आर्यन को पाँच आदिवासी जातियों में विभाजित किया गया जिसे पंचजन कहा गया तथा गैर आर्यन की भी मदद प्राप्त की |आर्यन गोत्र के शासक भरत व त्रित्सु थे जिन्हे वसिष्ठ पुरोहित मदद करते थे |भारतवर्ष देश का नाम राजा भरत के ऊपर रखा गया

दसराजन युद्ध

भारत पर भरत गोत्र के राजा ने शासन किया तथा उन्हें दस राजाओं का विरोध भी झेलना पड़ा; पाँच आर्यन तथा पाँच गैर आर्यन|इनके बीच में हुए युद्ध को दस राजाओं के युद्ध या दसराजन युद्ध के नाम से जाना  गया |परुषनी या रावी नदी पर किया गया युद्ध सूद के द्वारा जीता गया |बाद में भरत ने पुरू के साथ नाता जोड़ लिया जिससे कुरु नाम का नया गोत्र बना |बाद के वैदिक युग में कुरु व पांचालों ने गंगा के ऊपरी पठारों की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जहाँ उन्होने एक साथ राज किया |

वैदिक काल में नदियाँ

 

सप्त सिंधु शब्द  या सात मुख्य नदियों के समूह का भारत के ऋग वेद में उल्लेख किया गया है |वे सात नदियाँ थीं:पूर्व में सरस्वतीपश्चिम में सिंधुसतुद्रु (सतलुज)विपासा (ब्यास)असिक्नी(चेनाब)परुषनी(रावी) औरवितस्ता( झेलम)

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